खानवा का युद्ध


पानीपत का प्रथम युद्ध के बाद बाबर ने  अपने साम्राज्य विस्तार के लिए खानवा का युद्ध 1527 में  मेवाड़ के राणा सांगा के साथ लड़ा,जिसमे बाबर ने सांगा को हराया। युद्ध के उपरांत राजपूत राज्य कमजोर हुआ और मुग़ल साम्राज्य का नीव पड़ा ।

राजस्थान में भरतपुर के निकट एक ग्राम खानवा जो फतेहपुर सीकरी से 10 मील उत्तर-पश्चिम में स्थित है। खानवा को कनवा नाम से भी जाना जाता है। 16 मार्च 1527 को बाबर की सेना खानवा पहुची, और उसके एक दिन बाद 17 मार्च 1527 को युद्ध प्रारंभ हुआ।  यह युद्ध  में मेवाड़ के राणा साँगा और बाबर के मध्य लड़ा गया । इस युद्ध में राणा सांगा का साथ मारवाडा , ग्वालियर , आम्बेर , चंदेरी के नरेश एवं इबाहीम लोदी का भाई मोहम्मद लोदी दे रहे थे ।

खानवा का युद्ध, जो कोई दस घंटे चला, अविस्मरणीय युद्धों में से एक है। यद्यपि राजपूत वीरता से लड़े, किंतु बाबर की जीत हुई। राजपूतों की हार का एक कारण पवांर राजपूतों की सेना का ठीक युद्ध के समय महाराणा को छोड़कर बाबर से जा मिलना था। बाबर द्धारा राणा साँगा पर विजय प्राप्ति ने बाबर एवं उसके सैनिकों की चिंता समाप्त कर दी और वे अब भारत विजय के सपने को साकार कर सकते थे।

उत्तरी भारत में दिल्ली के सुल्तान के बाद सबसे अधिक शक्तिशालीशासक चित्तौड़ का राजपूत नरेश राणा साँगा (संग्राम सिंह) था। उसने इब्राहीम लोदी और बाबर के युद्ध में तटस्थता की नीति अपनायी था । राणा सांगा वीर सेनानी था। वह अनेक बार युद्ध कर चुका था, उसे सदैव विजय प्राप्त हुई थी। इस युद्ध में राणा सांगा के संयुक्त मोर्चे की ख़बर से बाबर के सैनिकों का मनोबल गिरने लगा। बाबर ने अपने सैनिकों के उत्साह को बढ़ाने के लिए शराब पीने और बेचने पर प्रतिबन्ध की घोषणा कर शराब के सभी पात्रों को तुड़वा कर शराब न पीने की कसम ली, उसने मुसलमानों से ‘तमगा कर’ न लेने कीघोषणा की। तमगा एक प्रकार का व्यापारिक कर था, जिसे राज्य द्वार लगाया जाता था। इस तरह खानवा के युद्ध में भी पानीपत युद्ध की रणनीतिका उपयोग करते हुए बाबर ने राणा सांगा के विरुद्ध एक सफल युद्ध की रणनीति तय की और युद्ध का परिणाम अपने  तरफ करने में कामयाब हुआ।

खानवा के युद्ध को जीतने के बाद बाबर ने ‘ग़ाज़ी’ की उपाधि धारण की। इस युद्ध में राणा सांगा घायल हुआ, पर किसी तरह अपने सहयोगियों द्वारा बचा लिया गया। कालान्तर में अपने किसी सामन्त द्वारा ज़हर दिये जाने के कारण राणा सांगा की मृत्यु हो गई।  इस युद्ध के बाद  बाबर ने राजपूतों के बारे में लिखा कि,− ‘वे मरना−मारना तो जानते है; किंतु युद्ध करना नहीं जानते।

कहा जाता है की  पानीपत युद्ध का कार्य खानवा के युद्ध ने पूरा किया। इस युद्ध के पश्चात बाबर के क़दम भारत में पूरी तरह से जम गए जिससे भावी महान् मुग़ल साम्राज्य की नींव पड़ी।खानवा की विजय ने मुग़ल साम्राज्यवाद के बीजारोपण के मार्ग से बहुत बड़ी बाधा हटा दी थी