पानीपत का प्रथम युध्द

पानीपत का प्रथम युद्ध (1526)

पानीपत की पहली लड़ाई 21 अप्रैल, 1526 को पानीपत के मैदान में दिल्ली के सुल्तान इब्राहीम लोदी और मुगल शासक बाबर के बीच हुई। युद्ध में इब्राहीम लोदी और बाबर के मध्य हुए भयानक संघर्ष में लोदी की बुरी तरह हार हुई और उसकी हत्या कर दी गई।

इब्राहीम लोदी 1517 में जब गद्दी पर बैठा था उसके सम्राज्य में अस्थिरता एवं अराजकता के दौर से गुजर रहा था और आपसी मतभेदों एवं निजी स्वार्थों के चलते दिल्ली की सत्ता निरन्तर प्रभावहीन होती चली जा रही थी। इन विपरीत परिस्थितियों इब्राहीम लोदी के कई सरदार और उसके कुछ अपने सम्बधि उससे नाराज थे, उसी समय इब्राहीम के असंतुष्ट सरदारों में पंजाब का शासक ‘दौलत ख़ाँ लोदी’ एवं इब्राहीम लोदी के चाचा ‘आलम ख़ाँ’ ने काबुल के तैमूर वंशी शासक बाबर को भारत पर आक्रमण के लिए निमंत्रण दिया। बाबर ने यह निमंत्रण स्वीकार कर लिया और वह भारत आया। जनवरी, 1526 में अपनी सेना सहित दिल्ली पर धावा बोलने के लिए उसने अपने कदम आगे बढ़ा दिया दिए। रास्ते में ही इसकी खबर जब इब्राहीम लोदी को मिली तो उसने बाबर को रोकने के लिए कई कोशिश किया लेकिन सभी बिफल रहा। बाबर आगे बढते रहा और इधर से दिल्ली भी सेवा लेकर निकल पड़ा , दोनों सेना पानीपत के मैदान में 21 अप्रैल, 1526 के दिन आमने-सामने आ डटी ।

इस युद्ध को जीतने के उद्देश्य से बाबर पूरी योजना के साथ आया था , उसने इस युद्ध के लिए  कई नए युद्ध नीतिया और नए हथियारों का प्रयोग किया था, जो किसी भी भारतीय राजा के लिए नया था। बाबर ने तुलगमा युद्ध पद्धति उजबेकों से ग्रहण की थी। पानीपत के युद्ध में ही बाबर ने अपने दो प्रसिद्ध निशानेबाज़ ‘उस्ताद अली’ एवं ‘मुस्तफ़ा’ की सेवाएँ ली। इस युद्ध में पहली बार बारूद, आग्नेयास्त्रों और मैदानी तोपखाने को उपयोग किया गया । साथ ही  इस युद्ध में बाबर ने पहली बार प्रसिद्ध ‘तुलगमा युद्ध नीति’ का प्रयोग किया था और  इसी युद्ध में बाबर ने तोपों को सजाने में ‘उस्मानी विधि’ (रूमी विधि) का प्रयोग किया था।

एक अनुमान के मुताबिक बाबर की सेना में 15000 के करीब सैनिक और 20-24 मैदानी तोपें थीं। लोधी का सेनाबल 130000 के आसपास था, हालांकि इस संख्या में शिविर अनुयायियों की संख्या शामिल है, जबकि लड़ाकू सैनिकों की संख्या कुल 100000 से 110000 के आसपास थी, इसके साथ कम से कम 300 युद्ध हाथियों ने भी युद्ध में भाग लिया था। क्षेत्र के हिंदू राजा-राजपूतों इस युद्ध में तटस्थ रहे थे, लेकिन ग्वालियर के कुछ तोमर राजपूत इब्राहिम लोधी की ओर से लड़े थे।

‘बाबरनामा’ के अनुसार बाबर की सेना में कुल 12,000 सैनिक शामिल थे। दूसरी तरफ, इब्राहिम की सेना में ‘बाबरनामा’ के अनुसार एक लाख सैनिक और एक हजार हाथी शामिल थे।  बाबर की सेना में नवीनतम हथियार, तोपें और बंदूकें थीं। तोपें गाड़ियों में रखकर युद्ध स्थल पर लाकर प्रयोग की जाती थीं। सभी सैनिक पूर्ण रूप से कवच-युक्त एवं धनुष-बाण विद्या में एकदम निपुण थे।

बाबर के कुशल नेतृत्व, सूझबूझ और आग्नेयास्त्रों की ताकत आदि के सामने सुल्तान इब्राहिम लोदी बेहद कमजोर थे। सुल्तान की सेना के प्रमुख हथियार तलवार, भाला, लाठी, कुल्हाड़ी व धनुष-बाण आदि थे। हालांकि उनके पास विस्फोटक हथियार भी थे, लेकिन, तोपों के सामने उनका कोई मुकाबला ही नहीं था। इससे गंभीर स्थिति यह थी कि सुल्तान की सेना में एकजुटता का नितांत अभाव और सुल्तान की अदूरदर्शिता  का अवगुण आड़े आ रहा था। इस भीषण युद्ध में सुल्तान इब्राहिम लोदी व उसकी सेना मृत्यु को प्राप्त हुई और बाबर के हिस्से में ऐतिहासिक जीत दर्ज हुई। इस युद्ध के उपरांत लोदी वंश का अंत और मुगल वंश का आगाज हुआ। लोदी वंश के स्थान पर मुगल वंश की स्थापना हुई। कई इतिहासकारो ने इस युद्ध के उपरांत भारतीय इतिहास में एक नए युग का आरंभ माना है